कौवा-प्रतिबिम्ब व हम

● 《 कौवा-प्रतिबिम्ब व हम 》

कौवा को पक्षियों में सबसे चालाक माना जाता है परंतु जीवन पर्यंत उसकी चालाकी उसके किसी भी स्वार्थ को पूर्ण होने में मदद नहीं करते। उसकी चालाकी उसके स्वयं के सुकुन को ही नष्ट कर देती है।

स्वप्न से आधे रास्ते में बेमन से हाथ छुड़ा कर प्रतिदिन भोर मे बिस्तर से उठकर दैनिक क्रिया हेतु अपने कक्ष से प्रस्थान करना ही पड़ता है क्योकि प्रातः 7:00 बजे से ही बच्चों का आना शुरू हो जाता है कोशिश यही रहती है तो 7:00 बजे से पूर्व व्यायाम स्नान ध्यान आदि पूर्ण करके ऑफिस में उपस्थित होना है।

मैं जिस विद्यालय में कार्यरत हूं वहां का खेल का मैदान काफी बड़ा है तो अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रतिदिन टहलने व व्यायाम करने हेतु समय से मैदान में पहुंचना पड़ता है।

सूर्य प्रतिदिन अपने निर्धारित दिशा से उगता है, प्रातः काल विभिन्न प्रकार के पक्षियों का आना जाना लगा रहता है प्रतिदिन प्रातः काल पक्षियों की चहचहाहट प्राकृतिक संगीत का दर्शन कराती है जोकि निश्चित है अंतर्मन को भेदने की शक्ति रखती है इन्ही सबके बीच प्रतिदिन कुछ कौवा का समूह भी आता है जिनकी नजर हमेशा इन छोटे पक्षियों के बच्चों को उनके अंडों उनके द्वारा एकत्र किए गए दानों पर रहती है।

विद्यालय के प्रथम तल पर ऑफिस के ठीक ऊपर वाले तल पर खिड़कियों पर शीशे लगे हैं जो कि पारदर्शी नहीं है इसलिए शीशे के सामने आने वाले प्रत्येक पक्षियों व्यक्तियों को अपना प्रतिबिंब स्पष्ट दिखाई देता है।शीशे के सामने से तो प्रायःसभी पक्षियो का समूह गुजरता हैं कुछ ध्यान देते होंगे या कहीं कुछ पर मेरी नजर ना पड़ती होगी लेकिन उनकी कोई प्रतिक्रिया अभी तक कभी देखने को नहीं मिली या कहिए छोटे पक्षियों अपने जिम्मेदारी में को पूर्ण करने में इतने व्यस्त होते हैं कि उनका ध्यान प्रतिबिंब पर जाता ही नहीं मेरा कक्ष विद्यालय के प्रथम तल पर ऐसे स्थान पर है यहां से पूरे विद्यालय पर नजर रखी जा सकती है।

विद्यालय में प्रतिदिन कौवा का समूह के एक दो सदस्य शीशे के ठीक सामने आकर अपने प्रतिबिंब से चोंच लड़ाते हैं तो कभी पंखों से प्रहार करते हैं कभी पंजों से वार करते हैं यह क्रिया प्रतिदिन प्रातः व सायं काल को नियमित रूप से देखने को मिलता है जिस समय कौवा अपने ही प्रतिबिंब से लड़ने में व्यस्त रहता है कुछ कौवे दूर से बैठकर कांव-कांव की आवाज निकाल कर कहिए प्रतिबिंब की उलाहना करते है या फिर अपने साथी के हौसलों को बढ़ाते हैं। इस लड़ाई में कौवा अपने आप को ही घायल करने के पश्चात प्रतिबिंब में दिखने वाले कौवा को घायल समझ कर खुश होता है और आगे बढ़ता जाता है।

प्रतिदिन की इस लड़ाई से कौवा थक कर अक्सर लौट जाया करता है अगले बार फिर उसी ऊर्जा के साथ उसी क्रिया को दोहराने के लिए पुनः उपस्थित होता है हर बार हार होने के कारण वह मैदान को छोड़ता नहीं पिछले डेढ़ वर्ष से मैं अक्सर इस लड़ाई का प्रत्यक्षदर्शी रहा हूं।

ठीक इसी कौवा के भाँति हम मनुष्य अपने संसारिक जीवन में अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए प्रतिदिन नियमित किसी न किसी क्षेत्र में अपनो के बीच में संघर्ष करते हुये आगे बढ़ते है। सामाजिक व राजनीतिक क्षेत्र में भी यही उठा-पटक लगा रहता है। अपने आप को चालाक व शक्तिशाली समझने वाले कुछ देहधारी का आमना-सामना जब अपने व्यक्तित्व व उर्जा वाले देहधारी से होता है तो वह आतिथ्य व स्वागत सहयोग करने के स्थान पर उसे एकजुट होकर झपटने का प्रयास करने लगते है। स्वतः ही अपने अस्तित्व को खतरे में मानकर कर उसका संरक्षण करने का असफल प्रयास करने लगते है। मूर्खता में देहधारी यह भूल जाते है कि वह प्रत्येक प्रहार अपने ही प्रतिबिंब पर करते है जिसका असर उनके ही व्यक्तित्व पर आता है।

हमें हमेशा यह आकलन करना चाहिए कि हम जाने अनजाने में अपने आचार-व्यवहार व क्रिया से कही अपने प्रतिबिंब पर प्रहार तो नही कर रहे।

हमें हमेशा अपने सामने आने वाले उर्जावान देहधारी का सहयोग व सम्मान करने का प्रयास करना चाहिए क्योकि वह कोई और नही हमारा ही प्रतिबिंब है जिसका परिणाम दूरगामी होता है। जिस दिन हम इस प्रकार की कौवा लड़ाई से बाहर निकलने में सफल हो जायेगें हम सभी सभी का जीवन सफल हो जायेगा।

जय हो।

-सौरभ श्रीनेत

Saurabh Shrinet

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